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जान पहचान के वे लोग कहाँ / देवी नांगरानी

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जान पहचान के वे लोग कहाँ
हैं परायों में अपने लोग कहाँ

मुस्कराहट ही देखते हैं बस
आहे-दिल देखें ऐसे लोग कहाँ

सिसकियों का ये सिलसिला तोड़ें
दें दिलासा जो ऐसे लोग कहाँ

घर जला है कि दिल, धुआँ कैसा
जाके देखें वहाँ वे लोग कहाँ

मेरी तन्हाइयों को सहलाएँ
धूप में साया बनके, लोग कहाँ

घर में तो वो पनाह देते हैं
दिल का दर खोलें, वैसे लोग कहाँ

उनपे झट से यकीन हम कर लें
हैं भरोसे के इतने लोग कहाँ

हादसों का शिकार सब 'देवी'
उनसे बच निकलें ऐसे लोग कहाँ