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कई साज़ों से हमने आज महफल / देवी नांगरानी

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कई साज़ों से हमने आज महफ़िल को सजाया है
ज़बां शब्दों को देकर ख़ूबसूरत गीत गाया है

नहीं हालात बस में जब कभी इन्सान के होते
क़फ़स में फिर वो इक पंछी के जैसा छटपटाया है

सभी मजबूर होते हैं कभी कोई, कभी कोई
सभी को वक्त ने इक दिन शिकार अपना बनाया है

नहीं होती हैं पूरी चाहतें सब की ज़माने में
सुकूने-मुस्तकिल कोई बताए किसने पाया है

भरोसा करने से पहले ज़रा तू सोचती ‘देवी’
कि सच में झूठ कितना उस फ़रेबी ने मिलाया है