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मुझको पागल बना रहे हो तुम / देवी नांगरानी
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मुझको पागल बना रहे हो तुम
भीड़ ख़ासी जुटा रहे हो तुम
इस क़दर खो गये हो दौलत में
मुफ़लिसों को रुला रहे हो तुम
अपनी नादानियों पे हो नाज़ां
मुझपे तोहमत लगा रहे हो तुम
दर्ज इतिहास में तो हूँ लेकिन
फिर भी मुझको भुला रहे हो तुम
सबसे मिलते हो सब तुम्हारे हैं
ग़ैर मुझको बना रहे हो तुम
जाने कितने दिलों से खेले हो
कब किसी के सदा रहे हो तुम
ज़ुल्म पर ज़ुल्म क्या कहें ‘देवी’
मेरी चीख़ें दबा रहे हो तुम