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है कशिश कितनी आबो दानों में / देवी नांगरानी
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है कशिश कितनी आबो दानों में
जोश भरती है जो उड़ानों में
शहर की हर सड़क सलामत है
छुप रही दहशतें मक़ानों में
मंज़िलों तक पहुंच न पाएंगे
जो कि बैठे है सायबानों में
हमको फुसलाओगे भला कब तक
रखके सच्चाई तुम बहानों में
होके मायूस रब के दर से हम
आ गए अब शराब खानों में
हम भी नादां नहीं रहे ‘देवी’
बैठते अब है हम सयानों में