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आंधियों के भी पर कतरते हैं / देवी नांगरानी

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आंधियों के भी पर कतरते हैं
हौसले जब उड़ान भरते हैं.

ग़ैर तो ग़ैर हैं चलो छोड़ो
हम तो बस दोस्तों से डरते हैं.

जिंदगी इक हसीन धोका है
फिर भी हंस कर सुलूक करते हैं.

राह रौशन हो आने वालों की
हम चराग़ों में खून भरते हैं.

खौफ़ तारी है जिनकी दहशत का
लोग उन्हीं को सलाम करते हैं.

कल तलक सच के रास्तों पर थे
झूठ के पथ से अब गुज़रते हैं.

हम भला किस तरह से भटकेंगे
हम तो रौशन ज़मीर रखते हैं

आदमी देवता नहीं फिर भी
बन के शैतान क्यों विचरते हैं.