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है अति सुखकर मिलन मधुर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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है अति सुखकर मिलन मधुर, जिसमें होता प्रिय का संयोग।
मृदुल मधुर मुसकान मनोहर, अनुपम, दिव्य सुधारस भोग॥
पर वह होता एक देश में, एक काल में, एक प्रकार।
अन्तर्दृष्टि न रहती, होती वृात्ति सर्वथा बाह्यस्नकार॥
किंतु परम उत्कृष्ट नित्य सुख देता प्रिय का विषम वियोग।
दिग्दिगन्त में मिलता उनका निशि-दिन मधु दर्शन-संयोग॥
देश-काल का कभी न रहता कुछ भी वहाँ तनिक व्यवधान।
प्रति पदार्थ में मिलते प्रियतम, हरदम करते सुख का दान॥
नित्य स्पर्श से पुलकित रहता रोम-रोम खिलते सब अंग।
प्रिय-वियोग इससे अति काम, खिलते जहाँ नित नये रंग॥