लज्जा, शील, मोह गृह भारी, सिंहद्वार गुरुजन का मान।
धर्म-कपाट लगे थे अति दृढ़, ताला था कुल का अभिमान॥
वंशीरव के वज्रपात से टूटा लज्जा-दुर्ग महान।
भूमिसात हो गया सभी कुछ, हुई भूमि सब एक-समान॥
लज्जा, शील, मोह गृह भारी, सिंहद्वार गुरुजन का मान।
धर्म-कपाट लगे थे अति दृढ़, ताला था कुल का अभिमान॥
वंशीरव के वज्रपात से टूटा लज्जा-दुर्ग महान।
भूमिसात हो गया सभी कुछ, हुई भूमि सब एक-समान॥