भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दु:ख के दिन / हरीसिंह पाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीसिंह पाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जब जानेंगे अपने को
जब पहचानेंगे अपने को
तो मन के सब भ्रम मिट जाएंगे
रात की कालिमा कट जाएगी।
कोई पुराना पल कब तक रह पाता है?
सपनों के आगे रास्ता नहीं है
यथार्थ के आगे आंखें तो खोलें।
उठ खड़े होकर अपने को तोलें
समझ लें अपने को धीर भी, वीर भी
अपना भाग्य-निर्माता और कर्मवीर भी।
ये मन के भ्रम ही तो हैं
जो आगे बढऩे नहीं देते
अपने ही बनाए हवाई किलों से
अंतर्मन में झांककर तो देखें
हर कोई मित्र हैं, हर कोई अपना है
हंसना, मुस्कराना तो अपना है
चाहे जिसे अपना बना लें
फिर यह कैसी उदासी?
इसे अपने मन की खुशी से सजा लें
सब भ्रम मिट जाएंगे
दु:ख के दिन टल जाएंगे।