Last modified on 30 अप्रैल 2014, at 13:11

गाँव की गुडिया / शैलजा पाठक

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 30 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उसकी आँखों से
एक गरम नदी निकलती है

एक ठंढी साँझ का
उदास सूरज
डूबता है उसकी
गहरी आँखों में

बेअसर दस्तकों से
नही कांपते दरवाजे

गीतों के धुन पर
नहीं लरजते होठ

सुना है एक रंगीन
शहर में भेज दी गई

गाँव की गुडिया
अपनी परछाइयों में छूती है
गाँव का पीपल

जीने की कोशिश में
मुस्कराती है

और मर जाती है
अगले ही पल ...