भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जयवह जँ मुहँमोरि सजनि गय / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:36, 30 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जयवह जँ मुहँमोरि सजनि गय!
कतबो विकल विह्वल भ' रहबह
अयबह तँ कि बहोरि सजनि गय...
वर शीतल सुकुमार मानि क'
रखलह सुमुखि परवानक पट मे
कहियो प्रेम पहाड़ फानि क'
बहि जयबह मसान मरूघर मे
वक्षस्थलक विशाल बान्ह केँ
दोमि दोमि झकझोरि सजनि गय....

चानन वेखक वाहुपाश ल'
शांगह मे सिरिषक सुवास ल'
दोना मे दू दू अकाश फल
तरहथ मे मह-मह पलाश ल'
तोँ ऱहवह हम शालिग्राम केँ
ल' चलवह हिलकोरि सजनि गय...

वूझि सूझि क' सांठह संवल
नहि चाही नोरक बोड़ल जल
तपित भावक श्रृंग चुआवह
भरह विवेक विचारक परिमल
कपटक पाँक छलक सिकता के
कातहि काते छोड़ि सजनि गय...