भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नचारी / कालीकान्त झा ‘बूच’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 6 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहिना कऽ अपन भाग्य वाम,
जा रहलहुँ बैद्यनाथ धाम
त्यागि भाइ बन्धु घऽर गाम,
जा रहलहुँ बैद्यनाथ धाम
कामनाक कामरू के गंगा मे बोरि-बोरि,
आयल छी अजगैबी नाथ शरण हाथ जोरि,
नाचि-नाचि गाबि ठाम-ठाम,
जा रहलहुँ बैद्यनाथ धाम
दुःखक अथाह धार भैरव जी पार करू,
बरका टा पापी हम हमरो उद्धार करू,
लैत रहब जीवन भरि नाम
जा रहलहुँ बैद्यनाथ धाम
चुट्टी केर धारी सन धामो मे भीड़ देखि,
छाती मे धकधकी सभ के अधीर देखि,
कोना की करबै हे राम ?
जा रहलहुँ बैद्यनाथ धाम
कखनो कऽ रौद भेल कखनो तितैत छी
तरवा तर काँट मुदा तैयो हँसैत छी
कर्म कठिन भाव निष्काम
जा रहलहुँ बैद्यनाथधाम