कैसी श्रद्धा / सावित्री नौटियाल काला
यह कैसी श्रद्धा व कैसी आस्था है|
जिसमें भक्तों का साथ भगवान ने नहीं दिया है|
यह कैसी अनोखी धार्मिक यात्रा है|
जिसमें जीवित रहने की मात्रा नही है||
कैसे भगवान हैं जो भक्तों से रुठ गये हैं|
तभी तो भक्त आपदा के शिकार हुये हैं|
श्रद्धालु कैसी आस्था व विश्वास से चले थे|
पर भगवान उनकी रक्षा नही कर पाये हैं||
आज तो भगवान स्वयं ही खतरे में हैं|
वे पहले अपनी रक्षा करेंगे तब भक्तों की बारी आयेगी|
तब तक भक्तों के अरमान पानी के साथ बह जायेंगे|
तब तो भगवान भी उन्हें नही बचा पायेंगे||
मानसून समय से पूर्व आ गया था|
शासन प्रशासन दैवीय विपदा का अनुमान नहीं लगा पाया था|
वरना यात्रियों को इतनी कठिनाई नहीं झेलनी पड़ती|
इतनी असुविधा इससे पूर्व कभी नहीं देखी गई||
सरकार की पोल पूरी तरह खुल गई है|
राहत व बचाव कार्य भी संतोष जनक नहीं है|
हजारों यात्रियों की मौत हो चुकी है|
गाँव के गाँव सैलाब में बह गये हैं||
केदारनाथ की सारी धर्मशालाओं में हजारों यात्री टिके हुये थे|
सब के सब जल प्रलय में समा गये|
सारा कारोबार ठप्प हो गया है|
लोग भूखे मर रहे हैं, दाने-दाने को तरस रहे हैं|
ऐसी विभीषिका कभी देखी न सुनी थी|
यह आपदा अचानक ही आई थी|
शायद पूजा की विधि में कुछ कमी रह गई होगी|
वरना केदार नाथ इतनी प्रलय न मचाते||