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वसन्त पंचमी की शाम / शमशेर बहादुर सिंह
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सुविख्यात कवयित्री श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान के निधन पर।
डूब जाती है, कहीं
जीवन में, वह
सरल शक्ति...
(म्यान सूनी है
आज) ...क्यों
मृत्यु बन आयी
आसक्ति, आज?
शुष्क हैं पल। अग्नि है घन।
सुनो वह 'पीयूऽ! - पीयूऽ!'
चिंता-सा बन कर रहा क्रन्दन।
मौन है नीलाभ काल।
(दैव-धन है कवि!)
आज माधव-हास है कितना निराशा-सिक्त:
मौन...तमस वैतरणी विलास।
× × ×
"फूल -
थे;
हो गये ...
तुम हे
मौन : धारा में,
संग उसके,
अमर जिसके गान।
"हे त्रिधाराधारमध्यविलास : जनमनमयी
करूणा के सरल मधुमास :
मुक्ता मुकुल कल उन्मादिनी के हास !
"नमो हे
सुख-शांति की
आाशा
क्रान्तिमयी !"