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कुछ मुक्तक / शमशेर बहादुर सिंह

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भाव थे जो शक्ति-साधन के लिए,
लुट गये किस आंदोलन के लिए?
यह सलामी दोस्‍तों को है, मगर
मुट्ठियाँ तनती हैं दुश्‍मन के लिए!
धूल में हमको मिला दो, किंतु, आह,
चालते हैं धूल कन-कन के लिए।
तन ढँका जाएगा धागों से, परंतु
लाज भी तो चाहिए तन के लिए।
नाज पकने पर खुले आकाश से
बिजलियाँ गिरती हैं निर्धन के लिए।
संकुचित है आज जीवन का हृदय,
व्‍यक्ति-मन रोता है जन-मन के लिए।