भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक मुद्रा से / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:12, 12 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

- सुंदर !
उठाओ
निज वक्ष
और-कस-उभर!

क्यावरी
भरी गेंदा की
स्व र्णारक्तु
क्यागरी भरी गेंदा की:
तन पर
खिली सारी -
अति सुंदर! उठाओ...।

स्वप्न--जड़ित-मुद्रामयि
शिथिल करुण!
हरो मोह-ताप, समुद
स्म र-उर वर :
हरो मोह-ताप -
और और कस उभर!
सुंदर! उठाओ...!
अंकित कर विकाल हृदय-पंकज के अंकुर पर
चरण-चिह्न,
अंकित कर अंतर आरक्तओ स्नेेह से नव, कर पुष्ट, बढ़ूँ
सत्वतर, चिरयौवन वर, सुदंर! –

उठाओ निज वक्ष: और और कस, उभर!