Last modified on 12 मई 2014, at 13:45

क्षण-भर सम्मोहन छा जावे! / अज्ञेय

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:45, 12 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्षण-भर सम्मोहन छा जावे!
क्षण-भर स्तम्भित हो जावे यह अधुनातन जीवन का संकुल-
ज्ञान-रूढि़ की अनमिट लीकें, ह्रत्पट से पल-भर जावें धुल,
मेरा यह आन्दोलित मानस, एक निमिष निश्चल हो जावे!

मेरा ध्यान अकम्पित है, मैं क्षण में छवि कर लूँगा अंकित,
स्तब्ध हृदय फिर नाम-प्रणय से होगा दु:सह गति से स्पन्दित!
एक निमिष-भर, बस! फिर विधि का घन प्रलयंकर बरसा आवे
क्रूर काल-कर का कराल शर मुझ को तेरे वर-सा आवे!
क्षण-भर सम्मोहन छा जावे!