भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमो-नमो यमुना महारानी! / गोपालप्रसाद व्यास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 15 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालप्रसाद व्यास |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गंगा घहरावैं, युमनाजी मंद-मंद बहैं,
वहाँ रोड़ी-रोड़ा, यहाँ कदमन की छय्या।
वहाँ पड़ै हड्डी, यहाँ चढ़ैं दूध फूल,
वहाँ चंडी चेतै, यहाँ महाविद्या मय्या।
वहाँ कूँडी-सोटा और चीमटा-चिलम चलैं।
यहाँ ठौर-ठौर जमे विजया-घुटय्या।
वहाँ मिलैं साधूजन, यहाँ मिलैं स्वादू 'व्यास'
वह हर की पैंड़ी, यह हरि-जनमय्या॥