भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाई रे! ऐसा पंथ हमारा / दादू दयाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दादू दयाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
भाई रे! ऐसा पंथ हमारा
द्वै पख रहितपंथ गह पुरा अबरन एक अघारा
बाद बिबाद काहू सौं नाहीं मैं हूँ जग से न्यारा
समदृष्टि सूं भाई सहज में आपहिं आप बिचारा
मैं,तैं,मेरी यह गति नाहीं निरबैरी निरविकरा
काम कल्पना कदै न कीजै पूरन ब्रह्म पियारा
एहि पथि पहुंचि पार गहि दादू, सो तब सहज संभारा