Last modified on 20 मई 2014, at 23:21

कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे / नज़ीर बनारसी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर बनारसी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे,
मैं उतना याद आऊँगा मुझे जितना भुलाओगे।

कोई जब पूछ बैठेगा खामोशी का सबब तुमसे,
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा न पाओगे।

कभी दुनिया मुक्कमल बन के आएगी निगाहों में,
कभी मेरे कभी दुनिया की हर एक शह में पाओगे।

कहीं पर भी रहें हम तुम मोहब्बत फिर मोहब्बत है,
तुम्हें हम याद आयेंगे हमें तुम याद आओगे।