भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसा राम हमारे आवै / दादू दयाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:44, 21 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दादू दयाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग: गौरी
ऐसा राम हमारे आवै।
बार पार कोइ अंत पावै॥टेक॥

हलका भारी कह्या न जाइ।
मोल-माप नाहिं रह्या समाइ॥

किअम्त लेखा नहिं परिमाण।
सब पचि हार साध सुजाण॥२॥

आगौ पीछौ परिमित नाहीं।
केते पारिष आवहिं जाहीं॥३॥

आदि अंत-मधि लखै न कोइ।
दादू देखे अचरज होइ॥४॥