भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम बिन भाव करन नहिं छूटै / दरिया साहब

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 23 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरिया साहब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाम बिन भाव करन नहिं छूटै।
साध-संग और राम-भजन बिनु, काल निरन्तर लूटै॥
मलसेती जो मलको धोवै, सो मल कैसे छूटै?
प्रेमका साबुन नामका पानी, दोय मिल ताँता टूटै॥
भेद-अभेद भरमका भाँड़ा, चौड़े, पड़-पड़ फूटै।
गुरुमुख-सब्द गहै उर-अंतर, सकल भरमसे छूटै॥
रामका ध्यान तू धर रे प्रानी, अमरतका मेह बूटै।
जन दरियाव, अरप दे आपा, जरा-मरन तब टूटै॥
नाम बिन भाव करन नहिं छूटै।
साध-संग और राम-भजन बिनु, काल निरन्तर लूटै॥
मलसेती जो मलको धोवै, सो मल कैसे छूटै?
प्रेमका साबुन नामका पानी, दोय मिल ताँता टूटै॥
भेद-अभेद भरमका भाँड़ा, चौड़े, पड़-पड़ फूटै।
गुरुमुख-सब्द गहै उर-अंतर, सकल भरमसे छूटै॥
रामका ध्यान तू धर रे प्रानी, अमरतका मेह बूटै।
जन दरियाव, अरप दे आपा, जरा-मरन तब टूटै॥