Last modified on 23 मई 2014, at 18:24

साधो, हरि-पद कठिन कहानी / दरिया साहब

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 23 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरिया साहब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साधो, हरि-पद कठिन कहानी।
काजी पण्डित मरम न जानै,
कोइ-कोइ बिरला जानी॥
अलहको लहना, अगहको गहना,
अजरको जरना, बिन मौत मरना।
अधरको धरना, अलखको लखना,
नैन बिन देखना, बिनु पानी घट भरना॥
अमिलसूँ मिलना, पाँव बिन चलना
बिन अगिनके दहना, तीरथ बिन न्हावना।
पन्थ बिन जावना, बस्तु बिनु पावना,
बिन गेहके रहना, बिना मुख गावना॥
रूप न रेख, बेद नहिं सिमृति,
नहि जाति बरन कुल-काना।
जन 'दरिया' गुरुगमतें पाया,
निरभय पद निरबाना॥