भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धीरे-धीरे आ ज्यागी या / रामफल सिंह 'जख्मी'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामफल सिंह 'जख्मी' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
धीरे-धीरे आ ज्यागी या, सब के ध्यान म्हं
अंधविश्वास ने फर्क गेर्या, म्हारे मिजान म्हं
हम कमा कै भी भूखे, म्हारे रहते होंठ सूखे,
म्हारे हाथ दूखे ईब, कर-कर कै काम नै,
रहे चूंट चाम नै ईब, मोड्डे हिन्दूस्तान म्हं
हम नहीं सोचते बात, ना लूटणिए के दीखैं हाथ,
न्यू तंग होया गात मेरा, ना समझूं चाल नै,
मैं काटूं उस डाल नै, बैठ्या जडै़ जहान म्हं
सोच समझ कै चालो ईब, सारे सलाह मिला ल्यो ईब,
अपणा मन समझा ल्यो ईब, बचा ल्यो खाल नै,
ना लुटण द्यो माल नै, सै गेंद थारे थान म्हं
छाण कै पीओ पाणी, ना तै हो कुणबा घाणी,
‘जख्मी’ बात कहै स्याणी, टोह्वो ख्याल नै,
म्हारे इस हाल नै, विष घोल दिया सम्मान म्हं