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सुख का सांस आवता ना / रामफल सिंह 'जख्मी'

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सुख का सांस आवता ना, सै सब तरियां की लाचारी हे
मत ना बूझै बात गात म्हं, मर्ज बैठ गी भारी हे
 
एक रोज का जिक्र करूं, मैं कस्सी-टोकरी ले कै चाल्ली
सारा दिन ली बाट देख, मायूस हो कै बोहड़ी खाल्ली
खाली मां नै देख उड़ ज्या, बच्चों के चेहरे की लाली
न्यू कहैं सैं मां भूखे सां, चीज खत्म होई सारी हे
 
बेटे का कुरता पाट्या सै, बेटी पै मेरी सलवार नहीं,
एक स्यौड़ दो खाट मूंज की, कोए पिलंग निवार नहीं,
जाडे म्हं रजाई चाहवैं सां, पर बणता कोए विचार नहीं,
मेरी छाती के म्हं घा हो रे, नस-नस म्हं फिरी बीमारी हे
 
होग्या इसा हाल, ख्याल मेरा रहता ना ठिकाणे हे,
घर का ना मकान मेरे, बैठे सैं घर बिराणे हे,
जिस तन लगै वो ही जाणै, कौण दूसरा जाणे हे,
सिस्टम नै ली चैन चुरा, न्यूए रात लिकड़ ज्या सारी हे
 
दिन की उडग़ी चैन, मनै ना नींद रात नै आती है,
चलती नै त्वाळे आवैं, या भूख घणी सताती है,
इसे दर्द म्हं कोई हंस ले, ‘रामफल सिंह’ की छाती है,
किते टैम पै टूक मिलै ना, किते धन की अलमारी हे