भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भगवान श्री कृष्ण की आरती / आरती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:37, 27 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |संग्रह=आरतियाँ }} <poem> आरती कुंजविह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आरती कुंजविहारी की। श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की।
गले में बैजंतीमाला, बजावै मुरली मधुर वाला।
श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंदके आनंद नंदलाला। श्री गिरधर ..
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतनमें ठाढ़े बनमाली।
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सो झलक,
ललित छवि स्यामा प्यारी की। श्री गिरधर ..
कनकमय मोर-मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसे,
गगन सो सुमन राशि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालनी संग,
अतुल रति गोपकुमारी की। श्री गिरधर ..
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा,
स्मरन ते होत मोह-भंगा,
बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अध कीच,
वरन छवि श्रीबनवारीकी। श्री गिरधर ..
चमकती उ"वल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू,
चहूं दिसि गोपी ग्वाल धेनू,
हँसत मृदु नँद, चाँदनी चंद, कटत भव-फंद,
टेर सुनु दीन भिखारी की। श्री गिरधर ..
आरती कुंजबिहारी की। श्री गिरधर कृष्णमुरारी की।