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रफ्तार / हरिओम राजोरिया

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(1)

अलग-अलग लोगों के लिये
अलग-अलग तरह से काम करती है रफ्तार
एक वे जो भागती रेलगाड़ी पर सवार हैं
और जल्द पहुँचना चाहते हैं अपने घर

दूसरे वे जो कभी रेलगाड़ी में नहीं बैठे
जिनके अपने घर ही नहीं
डरे-सहमे से भागती गाड़ी को देखते हैं

एक रफ्तार आगे की तरफ बढ़ाती है कदम
दूसरी कान पर हथौड़े की तरह पड़ती है

(2)

मैं उन तीन करोड़ बच्चों की बात कर रहा हूँ
जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है
जो स्कूल जाने की उमर में
खेतों से मटर की फलियाँ तोड़ते हैं
दुनिया भर के न जाने कितने काम
अनचाहे आ गए उनके हिस्से में

एक दिन यूँ कर बैठते हैं
रेल की पटरी से उठा लेते हैं गिट्टियाँ
और रेलगाड़ी पर टूट पड़ते हैं

ये घातक निशानेबाज
जिनके बदन पर कुल जमा
एक मैली पट्टे की चड्डी है
जो प्रतियोगी शब्द का तो अर्थ भी नहीं जानते
मेले-ठेलों में जिन्हें कभी
एक फुग्गा तक फोड़ने को नहीं मिला
गिट्टी के अचूक निशाने से
फोड़ देते हैं यात्रियों के सिर

क्या हो जाता है अचानक
कि भागती रेलगाड़ी की रफ्तार
आँखों को चुभने लगती है
यह एक ऐसी अपराधी रफ्तार है
जो किसी को भी एक दिन
मामूली होने के अहसास से भर देती है