Last modified on 30 मई 2014, at 11:00

श्री काली जी की आरती / आरती

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:00, 30 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKDharmikRachna}} {{KKCatArti}} <poem> अम्बे तू है जगम्बे काली जय दु...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
अम्बे तू है जगम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती।
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।।

तेरे भक्त जनों पे माता भीड़ पड़ी है भारी।
दानव दल पार टूट पड़ो मां करके सिंह सावरी।।
सौ सौ सिंहों से है बलशाली दस भुजाओं वाली।
दुखियो के दुखडें निवारती। ओ मैया...

मां बेटे का हैं पर ना माता सुनी कुमाता।।
सब पे करूणा दरसाने वाली अमृत बरसाने वाली।
दुखियो के दुखडें निवारती। ओ मैया...

नहीं माँगते धन और दौलत न चांदी न सोना।
हम तो मांगे मां तेरे मन में एक छोटा सा कोना।
सबकी बिगड़ी बनाने वाली लाज बचाने वाली
सतियों के सत को सँवारती। ओ मैया...