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रानी कीरति कुँवरि जा‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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रानी कीरति कुंवरि जा‌ई॥

 सुंदर सुभग मनोहर मंगल परम सुलच्छनि सब मन भा‌ई।
 सबै अलौकिक रूप मधुर गुन अमित प्रेम-सागर लहरा‌ई॥
 
 चिदानंद-रस हरि की अह्लादिनि-सक्ति सहज निज रूप छिपा‌ई।
 धनि-धनि भाग भानु नृप के जिन के घर यह कन्या बनि आ‌ई॥

 धनि रावल, धनि-धनि बरसानों, धनि गोपी, जिन गोद खिला‌ई॥
 नंद-जसोदा धन्य, आ‌इ जिन यहाँ सरित सुख-सुधा बहा‌ई॥