भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री जानकी की आरती / आरती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 31 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKDharmikRachna}} {{KKCatArti}} <poem> आरती कीजै जनक लली की। राममधु...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
आरती कीजै जनक लली की।
राममधुपमन कमल कली की

रामचंद्र, मुखचंद्र चकोरी।
अंतर सांवर बाहर गोरी।
सकल सुमंगल सुफल फली की॥ आरती...

पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी।
पीय प्रेम रस राशि किशोरी।
पिय मन गति विश्राम थली की॥ आरती...

रूप रासि गुणनिधि जग स्वामिनि
प्रेम प्रवीन राम अभिरामिनि।
सरबस धन हरिचंद अली की॥ आरती...