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कवण स्तुति करूं कवणिया वाचे / गोरा कुंभार

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कवण स्तुति करूं कवणिया वाचे। ओघ संकल्पाचे गिळिलें चित्तें॥ १॥
मन हें झालें मुकें मन हें झालें मुकें। अनुभवाचें हें सुखें हेलावलें॥ २॥
दृष्टीचें पहाणें परतले मागुती। राहिली निवांत नेत्रपाती॥ ३॥
म्हणे गोरा कुंभार मौन्य सुख घ्यावें। जीवें ओवाळावें नामयासी॥ ४॥