भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रलाप कंसक / कामिनी कामायनी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 4 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कामिनी कामायनी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कतेक रातिक जागल
लाल टरेस आंखि
जेना फटि क बाहरि निकसि आओत।
केहन भूखके हन पियास
खेनाय खाय छी
मुदा क्षुधा त जेना बिला गेल होय
ई सिंहासनई वस्त्राभूषनई रनिवास
किछू सुख नहिं द रहल अछि उद्विग्न मोंन के
सदिखन,उठैतबैसेतचलैतबुलईत
ओकरे चिंतनओकरे धियान
केवल ओओ ओ।
लोक कहैत अछिमक्खन सनहमर गौर वर्ण
अही आंच मे झरकि
एकदम स्याह पड़ि गेलकारी कचोर
ओकरे सन एनमेन।
आकासपाताल
दसो दिसा गवाह अछिहमर व्यथा के
ई हो लोकेक कहबी छै
बड़ बेसी नृशंस भेल जा रहल छी हम
परंचहमरा त कनिओ अपन शरीरक नहि भान
नहिंमोने के
बबूरक काँट शरीरक रॉम रोंम बनि गेल
कारी घुरमल घुरमलमाथक केस
बरछी जका ठा ढ़जिबैत हम मौतक पुतरा
मुदा कनिओ सुध हमरा कत्त
हम त मातल चारो पहरि आठो याम
ओकरे सोच मे ऊब डूब होईत
भयग्रस्त भ मृत्यु स
हदस पैसि गेल अछि
जेकर स्नेह मे
कोचवान बनलबिसरि गेल रहि अपन राजसी ठाट
ओहि देवकी के आठम संतान
राति दिन हमर डेरा रहल अछि
हांकंस हम
कोना तड़पि तड़पि क जीबी रहल छी
नहि बूझल किओ हमर पीर
ने जड़िनहिं चेतन
नहि जानिकहिया धरिभटकैत रहब
जीवन के अंत के पश्चातों
विराम करब वा नहिं की
किओ कहि सकैत अछि?