ओ प्रिये
दिन किसी निर्जन द्वीप पर पड़ी
ख़ाली सीपियों-से
लगने लगे हैं
और रातें
एबोला वायरस के
रोगियों-सी
क्या आइनों में ही
कोई नुक्स आ गया है
कि समय की छवि
इतनी विकृत लगने लगी है?
ओ प्रिये
दिन किसी निर्जन द्वीप पर पड़ी
ख़ाली सीपियों-से
लगने लगे हैं
और रातें
एबोला वायरस के
रोगियों-सी
क्या आइनों में ही
कोई नुक्स आ गया है
कि समय की छवि
इतनी विकृत लगने लगी है?