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माया के प्रवाह में पड़कर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग वागेश्री-ताल कहरवा)
माया के प्रवाह में पड़कर, बहा जा रहा खोकर ज्ञान।
इधर-उधर गोते खाता चलता, होता नाहक हैरान॥
निकल तुरत प्रवाहसे, मत डर, लपक पकड़ ले प्रभुका हाथ।
रहे पुकार हाथ ड्डैलाये, तुझे बचाने, चलते साथ॥
एक बार तू देख इधर, प्रभुका रक्षक कर वरद, विशाल।
कैसे तुझे निकाल उठानेको है तत्पर, बस तत्काल॥
ताका जहाँ, उठा, आ बैठेगा तू दिव्य सुखद प्रभु-गोद।
छा जायेगा जीवनमें अनुपम शुचि भगवदीय आमोद॥