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जानता हूँ पाप है / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग सोहनी-ताल दादरा)
 
जानता हूँ पाप है, पर पाप-रत रहता सदा।
पापसे मैं पृथक्‌ अपनेको न कर पाता कदा॥
दीन मैं असमर्थ, अब तो शरण प्रभुकी आ पड़ा।
अब दयामय एक प्रभुका ही भरोसा है बड़ा॥