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जन्म-मरण के दुःख भयानक से / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग तोड़ी-ताल कहरवा)
जन्म-मरणके दुःख भयानक से यदि चाहो होना मुक्त।
मनको रखो निरन्तर श्रीहरिकी पावन स्मृति से संयुक्त॥
भोगोंमें न राग रख रञ्चक, बने रहो प्रभु-पद-अनुरक्त।
सेवा करो सदा सबकी, बन प्रभु-भक्तों के सेवक भक्त॥