भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्गुण-निराकारके साधक पाते हैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 12 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग रामकली-ताल धमार)
 
निर्गुण-निराकारके साधक पाते हैं ‘कैवल्य’ महान।
होते लीन ब्रह्मामें तत्क्षण क्षारोदधि में लवण-समान॥
पर ‘कैवल्य’ नहीं दे पाता जिन प्रेमी भक्तों को तोष।
मुक्त भक्त वे ‘परमधाम’ में जाकर पाते हैं परितोष॥