(राग पलासी-ताल कहरवा)
मन मति साविक रहे, चितमें नित्य रहे सेवाका चाव।
बढ़ता रहे सदा जीवनमें सर्वभूतहितका शुचि भाव॥
चिंतारहित शान्त जीवन हो, हो न कदापि शोक, उर-दाह।
भय-प्रमाद मद-दभरहित हो प्रभु-पद-सेवनमें उत्साह॥
दीर्घ आयु, आरोग्य, सुसंतति धर्मयुक्त हो धन समान।
सब कर्मोंसे सदा सुपूजित होते रहें एक भगवान्॥
शुभ विचार, आचार शुद्ध हों, निर्मल हों सब वैध सुकर्म।
शरणागति प्रभुकी अनन्य हो, सर्वोपरि जो मानवधर्म॥