Last modified on 12 जून 2014, at 23:45

बिकाऊ / भास्कर चौधुरी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:45, 12 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्कर चौधुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दूर आसमान में
जितनी गहरी हो रही है रात
धरती पर उतनी ही तेजी से
बिक रही है चीज़ें...
(कहते हैं उजाला फैल रहा है
अच्छे दिन आ रहे हैं )
 
मुस्कुराहटें बिक रही है
बिक रही है हँसी
टपक पड़े आँसू
तो वह भी बिकाऊ है
 
पर नई चीज़ है
मन का बिकाउ हो जाना!!