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चाँद / सुलोचना वर्मा
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आसमान की बाँहो में
प्यारा सा वो चाँद
ना जाने मुझे क्यों मेरे
साथी सा लग रहा है
खामोश है वो भी
खामोश हूँ मैं भी
सहमा है वो भी
सहमी हूँ मैं भी
कुछ दाग उसके सीने पर
कुछ दाग मेरे सीने पर
जल रहा है वो भी
जल रही हूँ मैं भी
कुछ बादल उसे ढँके हुए
और कुछ मुझे भी
सारी रात वो जागा है
और साथ में मैं भी
मेरे आस्तित्व में शामिल है वो
सुख में और दुख में भी
फिर भी वो आसमाँ का चाँद है
और मैं... जमीं की हया!