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मन वशमें हो, इन्द्रिय-निग्रह / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग जंगला-ताल कहरवा)
 
मन वशमें हो, इन्द्रिय-निग्रह, सत्य, अहिंसा, शुद्धाचार।
सर्वभूत-हित-रतता हो, हो त्यागयुक्त सारे व्यवहार॥
हो वैराग्य भोग-विषयोंमें, हो प्रभु-स्मृतिमें दृढ़ आसक्ति।
पल-पल बढ़ती रहे निरन्तर प्रभु-पद-कमलोंमें अनुरक्ति॥
देख सदा सर्वत्र श्याम मुख-कमल, नेत्र मन हों बड़भाग।
जीवन सफल बने, पाकर श्रीहरिमें शुचि अनन्य अनुराग॥