निराश युवक से / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।
क्यों भूल रहा यह कर्म भूमि, मानव जीवन का यही लक्ष्य,
क्यों विमुख हुआ है तू उससे, कर्त्तव्य जो कि तेरे समक्ष?
तज दे प्रमाद, खो दे विषाद, मत हो निराश, मत हो अधीर।
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।
यह स्वस्थ और सुन्दरर शरीर, जिसमें असीम बल बुद्धि व्याप्त,
तू चाहे तो कर सकता है इसके द्वारा सब सिद्धि प्राप्त,
हो सावधान, साहस-कृपाण लेकर कुभाग्य का वक्ष चीर,
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।
है मान तिलया तूने जिसको विधि के हाथों का लिखा लेख,
तेरे माथे के स्वेद-बिन्दु धो सकते हैं वह अमिट रेख,
वर वीर जाग! भीरुता त्याग, मत व्यर्थ दृगों सेस बहा नीर।
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।
श्रम से सब ही कुछ सम्भव है, दे छोड़ असम्भव का विचार,
निष्काम कर्म का मर्म जान, है इस जीवन का यही सार,
बस कर्मयोग के साधन से, प्रकटा ले फिर सुखमय समीर।
उठ जाग युवक! बन कर्मवीर।