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मन के सब काले / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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चुपचाप रहे डसते, हँसते चित से वह चाहने वाले मिले।
कर मात गए अँधियार को जो, कुछ ऐसे अजीब उजाले मिले।
समझा मधु के घट था जिनको, अजमाया तो वे विष-प्याले मिले।
जितने भी मिले उजले तन के, मन के सब के सब काले मिले।।

कुसुमांजलि भेंट में दी जिनको, उनसे नित कष्ट कसाले मिले।
जिस ठौर गया कुछ आशा लिए, लटके वहीं द्वार पे ताले मिले।
निज प्राण लुटाए सदा जिन पे, वहीं व्यंग्य के बाण संभाले मिले।
जितने भी मिले उजले तन के, मन के सब के सब काले मिले।।

दिन-रात भरोसा किया जिन पे, उनसे नित कष्ट कसाले मिले।
कुछ दूर ही जाकर दस्यु बने, सब डोली के वो रखवाले मिले।
उपहार में प्यार दिया, उनसे रिसते अपमान के छालेे मिले।
जितने भी मिले उजले तन के, मन के सब के सब काले मिले।।