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मिट्टी का दीप / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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उदित प्राची दिशि में दिवनाथ, दिवस भर कर आलोक प्रदान।
लगे करने जब हो परिश्रान्त, प्रतीची के पथ से प्रस्थान।।

न थी मुख पर सुखमय मुस्कान, हृदय था विकल, अशांत, अधीर।
प्रकट करती चिंता के भाव, भाल पर उभरी हुई लकीर।।

रहा जो कार्य अभी अवशिष्ट, करेगा पूर्ण उसे अब कौन।
इसी चिंतन में होकर लीन, सोचते थे मन ही मन मौन।।

सजग रह कर जो सके संभाल, महत्तम उनका यह गुरूभार।
उसी की करने के हित खोज, चतुर्दिक देखा दृष्टि पसार।।

न कोई दीख पड़ा जब कहींे, हुए उस में सर्वथा निराश।
उझक कर मिट्टी का लघु दीप, तभी यों बोल उठा सोल्लास।।

दुखी हों देव न इतने आप, करें निज मन में दृढ़ विश्वास।
शक्ति भर अविरल जल कर समुद, करूंगा मैं यह पुण्य प्रयास।।