भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन को भा जानेवाले दिन / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
याद मुझे अक्सर आ जाते,आने,दो आने वाले दिन|
दूध मलाई गरम जलेबी,और रबड़ी खाने वाले दिन||
तीस रुपये में मझले काका, दिल्ली तक होकर आ जाते|
एक रुपये में ताजा खाना ,होटल में छककर खा आते||
बिन कुंडी के बाथ रूम में ,बेसुर में गानेवाले दिन|
याद मुझे अक्सर आ जाते,आने दो आने वाले दिन||
नाई काका बाल बनाने ,पेटी लेकर घर आ जाते|
दो रुपये में एक सैकड़ा, चाचा हरे सिंगाड़े लाते||
जेब खर्च के लिये पिता से, दो पैसे पाने वाले दिन|
याद मुझे अक्सर आ जाते, आने दो आने वाले दिन||
गब्बर बैल जुती गाड़ी में, भेरों के मेले में जाना|
फुलकी,गरम कचौड़ी,बर्फी,किसी हाथ ठेले पर खाना||
हँसते गाते, धूम मचाते,मन को भा जाने वाले दिन|
याद मुझे अक्सर आ जाते, आने दो आने वाले ||