भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कृष्ण अपने चललनि मधुबन गे / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:41, 1 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ऋतू ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कृष्ण अपने चललनि मधुबन गे, खेबै हम जहर गे ना
कृष्ण चलला अखाढ़ मास, साओन झहरय दिन राति
भादब लगै छै बड़ भयाओन गे, खेबै हम जहर गे ना
असिन आस लगअ लिऐ, कातिक किछु नहि केलिऐ
अगहन रुसि हम जेबै नइहर गे, खेबै हम जहर गे ना
पूस सीरक भरायब, माघ झाड़ि कऽ ओछायब
फागुन फागु खेलायब दिन चारि गे, खेबै हम जहर गे ना
चैत फुल फुलायल, बैसाख चिट्ठियो नहि आयल
जेठ पूरि गेलै बारह मास गे, खेबै हम जहर गे ना