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चानन रगडू सोहागिन हे / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चानन रगडू सोहागिन हे, गले फूलक हार
सिन्दुर सऽ मांग भरा दय हो, शुभ मास अषाढ़
तइयो ने आय राजा भरथरी, रानी सुन मोर बात
दय दऽ भीख जोगी के, जोगी छोडू मोरा द्वार
मृग मारन राजा जइहें, आहो वनमे शिकार
साओन के दुख दाओन हे, दुख सहलो ने जाय
ईहो दुख परियहु कुबजी के, मोर कन्त राखल लोभाय
आसिन आस लगाओल हो, आसो ने पूरल हमार
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
कार्तिक के पूर्णिमा, सभ सखि गंगा नहाए
सभ सखि पहिरे पीताम्बर, शुभे गुदरी पुरान
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
अगहन अग्र सोहाओन हो, पहीरि सब रंग चीर
चीड़ब फारब अंचरबा, फाटल कोमल शरीर
पूसहिं तूस भरत जी संग हो, हम करब प्रणाम
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
माघहिं केँ श्रीपंचमी हो, शिव व्रत तोहार
घूमि फिरि आबे मंदिरबा हो, शिव व्रत तोहार
फागुन फगुआ खेलायब हो, घोरब अतर गुलाब
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
चैतहि अमुआ मजरी गेल हो, महु गेल पतझार
बीछि-बीछि हार बनाएब हो, भेजब राजाजी के पास
बैसाखहि गरमी लगतु हैं, चहुदिस खिड़की करायब
पिया बिनु निन्द ने लागय, रानी सुनू मोर बात
जेठहि भेंट भरथ जी सऽ हो, पूरी गेल बारहमास
चानन रगडू़ सोहागिन हे, गले फूलक हार