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सिनुरा जखन कहलियौ रे जटा / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सिनुरा जखन कहलियौ रे जटा
सिनुरा किए ने लयले रे
सिनुरा जखन अनलियौ गे जटनी
कोठी पर कऽ धयले गे
हरि-हरि बाली समैया अभगली
सिनुरा किए ने लगौले गे
टिकुली जखन कहलियौ रे जटा
टिकुली किए ने लयले रे
हरि-हरि बाली समैया अभगला
टिकुली किए ने लयले रे
टिकुली जखन अनलियौ गे जटनी
चक्का पर कऽ धयले गे
हरि-हरि बाली समैया अभगली
टिकुली किए ने सटले गे
साड़ी जखन मंगलियौ रे जटा
साड़ी किए ने किनले रे
हरि-हरि बाली समैया अभगला
साड़ी किए ने किनले रे
साड़ी जखन किनलियौ गे जटनी
पेटी मे कऽ धयले गे
हरि-हरि बाली समैया अभगली
साड़ी किए ने पहिरले गे
आंगी जखन मंगलियौ रे जटा
आंगी किए ने सियौले रे
हरि-हरि बाली समैया अभगला
आंगी किए ने सियौले रे
आंगी जखन सियौलियौ गे जटनी
मुहपोछनी मे कऽ धयले गे
हरि-हरि बाली समैया अभगली
आंगी किए ने पहिरले गे
नथिया जखन कहलियौ रे जटा
नथिया किए ने गढ़ौले रे
हरि-हरि बाली समैया अभगला
नथिया किए ने गढ़ौले रे
नथिया जखन गढ़ौलियौ गे जटनी
नाकक भूर मुनौले गे
हरि-हरि बाली समैया अभगली
नथिया कोना पहिरते गे