जीवन में घट रहे अंतरालों के बीच
कभी अनसुना, अप्रिय भी
सुंदर लगने लगता है
कभी-कभी लहरें तट को गीला नहीं करती
वे लौट जाती हैं अपनी गम्मत में
प्रतीक्षाएँ अपूर्ण रह जाती हैं
फिर भी सुंदर है लहर का खोना
सारी जालें काट दी जाती है अंत में
कई युद्धों के बाद
एक युद्ध अधूरा छूट जाता है
वासनाएँ गल जाती है अधूरे चुंबन से
काँटे आखिर में फूल हो जाते है
तितलियाँ स्पर्श करती है
मृत्यु का अंतिम सौंदर्य
सिर्फ बारिश अंतराल में गिरती है
पतझड़ की भूरी आँखें देखती हैं स्वप्न
सुनसान किसी टीले पर गिरते है अनंत तारे
यकीनन मृत्यु चुनती है
जीवन के अनेक रंगों में से एक रंग
वह रंग पूर्णता का है