भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी माँ / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:40, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजू शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कल्प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अपनी माँ का नाम मैंने कभी नहीं सुना
लोग कहते हैं
फलाने की माँ, फलाने की पत्नी और
फलाने की बहू
एक नेक औरत थी,
किसी को नहीं पता
माँ की आवाज़ कैसी थी,
मेरे ननिहाल के कुछ लोग कहते हैं
माँ बहुत अच्छा गाती थी,
माँ की गुनगुनाहट ने कभी भी
नहीं लाँघी थी
रसोई की ड्योढ़ी,
बर्तन जानते थे माँ की आवाज़
चाय को कितना मीठा करती होगी,
माँ की दस्तकारियाँ आज भी अधूरी हैं,
अधूरे रह गए हैं सारे रिश्ते,
अपनी नेकनामी के भार तले दबी हुई माँ
छोड़ गयी
अधूरी सांसे, अधूरी दस्तकारियाँ और अधूरे रिश्ते,
कभी कभी मैं सोचती हूँ
'नेक' बनने की कीमत चुकाने के लिए
अधूरा होना क्या पहली शर्त होती है...