Last modified on 4 जुलाई 2014, at 15:02

वे आँखें / अंजू शर्मा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजू शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कल्प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उफ़ वे आँखें,
एक जोड़ा, दो जोड़ा या
अनगिनत जोड़े,
घूरती हैं सदा मुझको,
तय किये हैं
कई दुर्गम मार्ग मैंने,
पर पहुँच नहीं पाई उस दुनिया में,
जहाँ मैं केवल एक इंसान हूँ
एक मादा नहीं,
वीभत्स चेहरे घेरे हैं मुझे,
और कुत्सित दृष्टि का
कोई विषबुझा बाण
चीरता है मेरी अस्मिता को,
आहत संवेदनाओं की
कातर याचना से
कम्पित हो उठता है
मेरा समूचा अस्तित्व,
कितना असहज है
उस हिंस्र पशुवन
से अनदेखा करते
गुजरना...